आयुर्वेद – शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का समन्वय
आयुर्वेद का विकास 600 ई.पू. भारत में हुआ। चिकित्सा की यह नई पद्धति शारीरिक विकारों की चिकित्सा के साथ-साथ उनसे बचने के उपायों पर बल देता है। द्रविडों और आर्यों के समय से ही आयुर्वेद का व्यवहार होता रहा है। आज, यह चिकित्सा की अनोखी, अनिवार्य शाखा है – सही संतुलन प्राप्त करने के लिए एक संपूर्ण प्राकृतिक पद्धति है, जो आपके शरीर के द्रवों- वात, पित्त और कफ के लक्षणों पर आधारित है।
आयुर्वेद केवल प्रभावित अंगों के उपचार में ही विश्वास नहीं करता बल्कि किसी व्यक्ति की संपूर्ण चिकित्सा करता है। यह आपको प्राकृतिक रूप से तरो-ताजा करता है, शरीर के सारे विषैले असंतुलनों को दूर करता है और इसप्रकार व्यक्ति को प्रतिरोधी क्षमता और बेहतर स्वास्थ्य मिलता है।
केरल, आयुर्वेद की भूमि
केरल की सम जलवायु, जंगलों की प्राकृतिक प्रचुरता (जड़ी-बूटी और औषधीय पौधों से भरपूर), और ठंडा मानसून मौसम (जून से लेकर जुलाई और अक्टूबर से लेकर नवम्बर) आयुर्वेद के आरोग्यकारी और स्वास्थ्यकर औषधि पैकेज़ के लिए उपयुक्त है।
दरअसल, आज, केरल भारत का एकमात्र वह राज्य है जहां पूर्ण समर्पण के साथ इस पद्धति को व्यवहार में लाया जाता है।
मानसून, कायाकल्प के लिए उपयुक्त समय
पारंपरिक मूलग्रंथों से पता चलता है कि कायाकल्प कार्यक्रमों के लिए मानसून का मौसम सबसे उपयुक्त है। वातावरण धूलरहित और शीलत रहता है, शरीर के रोम-छिद्र अधिकतम खुले होते हैं जो हर्बल तेल और उपचार के लिए शरीर को ग्रहणशील बनाता है।