आयुर्वेद से ठीक करें अपनी हड्डियों की सेहत
क्या आपके शरीर के जोड़ों में दर्द और सूजन है? क्या आपको अक्सर चलने फिरने में दिक्कत होती है? क्या आपकी भूख मर गई है या फिर आपको शरीर में ऊर्जा का स्तर निरंतर गिरता लगता है?
संभवतः इसका मतलब यह है कि आप रूमेटी गठिया (रयूमैटॉइड आर्थराइटिस) से ग्रस्त हैं जो कि आज के वक्त में दुनिया भर के लोगों को परेशान करने वाली सबसे आम क्रोनिक स्वास्थ्य समस्या है।
जैसा की आम तौर पर सभी जानते हैं कि आर्थराइटिस या गठिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें एक से अधिक जोड़ों में दर्द और सूजन होती है। ज्यादातर मामलों में यह रोग धीरे धीरे विकसित होता है और बहुत धीमे से इसका हमला होता है। हालांकि कुछ लोगों में यह अचानक कुछ ही हतों या महीनों में पनप जाता है, और किसी आम समस्या जैसे बुखार आदि के असर से रोग सामने आ जाता है। गठिया खुद को किसी भी प्रकार में प्रकट कर सकता है जैसे कि रूमेटी गठिया, ऑस्टियोआर्थराइटिस, गाउट, जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस और एेंकीलूजिंग़ स्पोंडीलोसिस आदि।
हालांकि गठिया 65 साल या उससे अधिम उम्र के लोगों को प्रभावित करता है लेकिन फिर भी बच्चों समेत सभी उम्र के लोगों को यह रोग जकड़ सकता है। अनुमान है कि 18 और 40 साल की उम्र के बीच हर 10 में से 1 व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त होता है। 45 से 65 साल की उम्र के बीच संख्या बढ़ जाती है और हर 10 में 4 लोग इससे ग्रस्त हो जाते हैं। अमेरिका में हुए एक सर्वे के मुताबिक वहां हर 250 बच्चों में से एक बच्चा गठिया से पीड़ित है।
ऐसा माना जाता है कि गठिया होने की प्रवृत्ति आनुवांशिक हो सकती है खास तौर पर जुवेनाइल आर्थराइटिस के मामलों में। इसके अतिरिक्त कुछ खास किस्म के संक्रमण या वातावरण में मौजूद कारक उन लोगों में इस रोग के लक्षण उत्पन्न कर सकते हैं जिन्हें इसका जोखिम है। युवाआेंं गठिया के मामले बढ़ने की वजह यह है कि उनके खाने का कोई तय समय नहीं है, अस्वास्थ्यकर खानपान के साथ उनकी जीवनषैली में सक्रियता का अभाव भी है; ये बातें उनकी जिंदगी में अब आम हो गई हैं।
विषेशज्ञ की सलाह- फरीदाबाद स्थित जीवा आयुर्वेद के निदेशक और आयुर्वेद के विषेशज्ञ डॉ. प्रताप चौहान ने हमें यह समझने में मदद की कि आयुर्वेद में गठिये बारे में क्या बताया गया है। उनके अनुसार, ”आर्थराइटिस को आयुर्वेद में ‘अम वात’ कहते हैं। यह सिर्फ जोड़ों की समस्या नहीं है जैसा कि आम तौर पर लोग समझते हैं। आयुर्वेद कहता है यह समस्या खराब पाचन, खान पान की गलत आदतों और निश्क्रिय जीवनशैली और साथ ही वात दोष के बढ़ने से होता है।”
”खराब पाचन और शरीर से अपशिष्ट पदार्थ नियमित तरीके से नहीं निकलने के कारण शरीर में विषैले पदार्थ यानी ‘अम’ जमा होने लगते हैं। यह ‘अम’ बिगड़े हुए वात के साथ मिलकर शरीर के विभिन्न जोड़ों में एकत्रित होने लगता है जिससे उनमें कड़ापन आ जाता है तथा जलन और दर्द होने लगता है। इसलिए आर्थराइटिस के इलाज में उसे जड़ से उखाड़ने पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है और दीर्घकालिक समाधान दिया जाता है, जबकि आधुनिक चिकित्सा में केवल लक्षणों को दबाने पर जोर दिया जाता है। हर मरीज को व्यक्तिगत उपचार योजना दी जाती है जिसमें आयुर्वेदिक औषधियां और साथ में खुराक व जीवनशैली संबंध परामर्श दिया जाता है।”
आयुर्वेदिक उपचार की प्रभावशीलता दर्शाने के लिए डॉ. चौहान ने अपनी एक मरीज अर्चना पांडे (नाम परिवर्तित) का उदाहरण दिया जिसका जीवा आयुर्वेद में सफलतापूर्वक उपचार किया गया। पुड्डूचेरी में रहने वाली 45 वर्षीय गृहणी अर्चना पिछले 10 सालों से जोड़ों के दर्द, कड़ेपन और जलन से परेशान थी।
डॉ. चौहान ने बताया, ”अर्चना की समस्या वास्तव में वात बिगड़ने और दोषपूर्ण पाचन की वजह से थी। इसलिए हमने उसकी असंतुलित शारीरिक ऊर्जाओं को शांत करने और पाचन क्षमता बेहतर करने पर ध्यान केन्द्रित किया। हमारी औषधियों और खुराक व जीवन शैली योजना से उसकी स्थिति में 10 महीनों में ही बेहद सुधार हो गया।”
आधुनिक चिकित्सा में गठिया का इलाज- नेशनल रयूमैटॉयड आर्थराइटिस सोसाइटी (यूके) और आर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ इंडिया तथा अन्य वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार आर्थराइटिस की सबसे सफल उपचार योजना यह है कि बहुआयामी ऐप्रोच का प्रयोग किया जाए जिसमें शामिल हैं- शारीरिक इलाज, आराम, दवाएं, दर्द कम करने के लिए एेंटी-रयूमैटिक और एेंटी-इंलेमेट्री दवाएं, और कुछ मामलों में सर्जरी भी शामिल है। गठिया का दर्द शरीर को कमजोर कर देता है और सामान्य गतिविधियों के लिए शरीर को अक्षम कर देता है।
आयुर्वेद- सर्वोत्कृष्ट विकल्प- ज्यादातर मरीजों को गठिया के दर्द से तात्कालिक आराम मिलता है और उसके लिए भी उन्हें षक्तिषाली दवाओं की नियमित डोज़ लेनी पड़ती है। जो लोग स्थायी राहत चाहते हैं उनके लिए आयुर्वेद सबसे अच्छा विकल्प है।
जुवेनाइल आर्थराइटिस और आयुर्वेद में इसके उपचार के बारे में डॉ. चौहान अपनी एक मरीज ओडिषा की प्रीति वर्मा (नाम परिवर्तित) के बारे में बताते हैं जिसे 2 साल की उम्र में यह रोग हुआ। ”प्रीति की बीमारी बुखार से शुरू हुई और बांये घुटने के अपनी जगह से हटने के बाद उसकी स्थिति और बिगड़ गई। वह पिछले 30 सालों से नियमित तौर पर दवाएं ले रही थी। 35 वर्ष की उम्र में वह इतनी अक्षम हो गई कि बैठने के बाद उठ नहीं पाती थी। इसके अलावा पेनकिलर्स के नियमित सेवन की वजह से उसका शरीर भीतर से कमजोर हो चला था।”
”हमारा विश्लेषण बताता है कि उसकी दोषपूर्ण रसप्रक्रिया से उसके जोड़ों में विशक्तता आ गई और सूजन व दर्द होने लगा। इसलिए उसके उपचार को उसके इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और पाचन को बेहतर करने पर केन्द्रित किया गया; इसके लिए उसे आयुर्वेदिक दवाएं और टेलर-मेड डाइट प्लान दिया गया। हालांकि उसकी बीमारी क्रोनिक थी लेकिन फिर भी हमसे आयुर्वेदिक इलाज कराने ने प्रीति को मात्र एक वर्श में काफी अच्छा महसूस होने लगा।”
आयुर्वेद का जोर गठिया के मूल कारण को खोजने और फिर उसके लिए उपचार तैयार करने पर रहता है। उपचार योजना हर मरीज के हिसाब से तय की जाती है ताकि रोगी को दीर्घकालिक राहत मिले। डॉ. चौहान ने गठिया के हजारों मरीजों का इलाज किया है और वे मानते हैं कि हमें रोग का इलाज करने के बजाय उसकी रोकथाम हेतु प्रयास करना चाहिए। उनके अनुसार हमें कुदरती सिध्दांतों के मुताबिक जीना चाहिए इसका मतलब यह है कि संपूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करें और रोगों को दूर रखें।