हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार के गठन के पंद्रह महीने बाद आज यह लग रहा है कि हरियाणा में एक अनुभवहीन सरकार है। जाट आरक्षण के मसले पर लगातार गलती पर गलती कर, महत्वपूर्ण संकेतों को नज़रअंदाज़ कर, अपने वोटबैंक के हिसाब से सामाजिक ताने-बाने से छेड़खानी की छूट देकर और जनादेश को अंतिम सत्य मानकर भाजपा सरकार ने अपनी धुन में एक्सपेरिमेंट करने शुरू कर दिए। आंदोलन को किसी भी स्तर पर जरूरी गंभीरता से नहीं लिया, हर बार एक कदम पीछे रहे। पुलिस, खुफिया तंत्र, बिचौलियो, सामाजिक संस्थाओं, संगठन.. किसी का सही इस्तेमाल सरकार नहीं कर पाई।
इससे आगे इस बात को भी बल मिला है कि सरकार जाटों में जबरदस्त तरीके से अलोकप्रिय हो चुकी है क्योंकि इस वर्ग से थोड़े से भी लोग राजी होते तो आंदोलन को इतना आक्रामक ना होने देते। शायद सरकार को इसकी परवाह नहीं है लेकिन खुलकर अपनी मर्जी करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही है।
साथ ही यह भी कि सामाजिक संस्थाओं, पंचायतों, मीडिया, बुद्धिजीवियों में भाजपा की पकड़ नहीं है। मुझे नहीं लगता कि सीएम या सरकार अगर चाहे कि बेरी, सफीदों, भिवानी, कलायत, रोहतक, गन्नौर में कुछ सामाजिक लोग निकलकर दंगाइयों को समझा बुझाकर शांत करवा दे तो पार्टी के पास वहां कोई ऐसी टीम है भी। कांग्रेस या इनेलो का सामाजिक तंत्र लगभग पूरे प्रदेश में है जबकि भाजपा का बहुत कम जगह।
भाजपा का पार्टी संगठन पूरी तरह गायब है। मोदी लहर के सहारे चुनाव तो जीत गए लेकिन निष्ठावान कार्यकर्ता गिने चुनी जगहों पर गिने चुने हैं। जो कार्यकर्ता हैं, वे भी अपनी सरकार से इतने निराश हैं कि उसके बचाव में आने से बच रहे हैं। सरकारी तरीके से सीएम और मंत्री वीडियो अपील कर रहे हैं बस। अरे आपकी माननी होती तो आंदोलन ही क्यूं होता। अब विधायक भेजे हैं लोगों के बीच। दंगा प्रभावित इलाकों में विधायक भाजपा के हैं ही बहुत कम। जो हैं वे जाटों में लोकप्रिय है ही नहीं। सरकार का थिंकटैंक कैसे काम कर रहा है, ये बहुत चिंता की बात है। सरकार को यह मानना पड़ेगा कि दिल्ली से सटा छोटा सा हरियाणा चार दिन से जल रहा है, लुट रहा है, मर रहा है, हाइजैक हुआ पड़ा है तो यह नामाफी वाली विफलता है।
चुनाव जीतना अलग बात है, सरकार चलाना अलग। मुझे महसूस हुआ है कि इस प्रकरण में मंत्रिमंडल के भीतर और पार्टी नेताओं में जबरदस्त मतभेद हैं। मुख्यमंत्री यह जरूर महसूस कर रहे होंगे कि उनके कई विधायक और मंत्री संकट की इस घड़ी में गायब से हैं। वे जानबूझ कर गायब हैं। इनके अलावा भी दर्जनों ऐसी बातें हैं जो बेहतर हो सकती थी और बेहतर होती तो आज वो हाल ना होता जो है। खट्टर साब भी चैन की नींद सो पाते और हम सब भी। खैर, मां के पेट से कोई सीखकर नहीं आता, अभी साढ़े तीन साल बाकी है सरकार के। हैपनिंग हरियाणा से पहले हैप्पी हरियाणा बनाने पर ध्यान देकर नुकसान की भरपाई शुरू करनी होगी।