सी गर्मी है कि दस मिनट धूप में चलना पड़े तो चक्कर आ जाए. ऐसे में रिक्शा, ठेला वालों, फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन में काम करने वाले मजदूरों और किसानों के लिए दिल से सम्मान निकलता है और शर्म भी आती है कि इक्कीसवीं सदी में भी इस गर्मी में उनके लिए ठन्डे पानी और छाते जैसी बेसिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है.